Bakhani is a Collection of Hindi Poems.- https://www.bakhani.com bakhani is my thinking. it is belonging to the "Hindi Literature". bakhani is to describe the world, and word in my own opinion. any one who is interested in poems, assays, stories, and other stream of literature may refer to my blog "bakhani". After all BAKHANI is collection of Poems, Dreams, Essays, and thoughts.
Saturday, December 28, 2013
Tuesday, December 17, 2013
#8--मन अशांत पक्षी का कलरव।
मन अशांत पक्षी का कलरव।
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मन अशांत पक्षी का कलरव। |
मन अशांत पक्षी का कलरव।
पतझड़ फैला फूला शेमल,
पतझड़ फैला फूला शेमल,
हलचल फैली फुदक गिलहरी,
कोयल कूके गीत सुहाना,
कोयल कूके गीत सुहाना,
देख अचंभित प्रकृति का रव ,
मन अशांत पक्षी का कलरव।
फूल सुशोभित भांति वृक्ष में,
मृदु सुगंध फैली चौतरफा,
खुले तले इस नील गगन के,
भ्रमर भटक पर पाए न रव,
मन अशांत पक्षी का कलरव।
जीत हार दिल की सब बातें,
चंचल मन बस भटके यूँ ही,
कभी भटक कर आसमान पर,
कभी स्थिर जैसे कोई शव,
मन अशांत पक्षी का कलरव।
विचलित मन बस खोज में भटके,
भटके खोजे शांति - संतुष्टि,
भटके तांडव शंकर खेलें,
मटके-अटके जैसे भैरव,
मन अशांत पक्षी का कलरव।
Thursday, December 5, 2013
#7--रील और रियल
रील और रियल
क्यों भागता है इस कदर,
क्यों है तेरे आगे रील,
रियल को छोड़ कर,
कर दे तू सब कुछ शील।
माना रील का ज़माना है,
पर रील में पड़ना मतलब गवाना है,
इतना कुछ गवां कर,
और क्या गँवाओगे,
सिर्फ गँवाते रहे तो,
ज़िन्दगी में क्या पाओगे?
रियल को समझो तो,
है यह बृह्मा की खींची लकीर,
फिर क्यों भागता है इस कदर,
क्यों है तेरे आगे रील?
Tuesday, November 19, 2013
#6--विज्ञान - एक अभिशाप
foKku& ,d vfHk'kki
इस दुनिया में रहनें वालों ने,
मौत की सेज सजाई,
दिन - प्रतिदिन यह सेज हाँ सुन लो,
लेती है अंगड़ाई।
पल - पल हर छण प्रति मानव,
करे मौत से लड़ाई,
इस दुनिया में रहनें वालों नें,
मौत की सेज सजाई।
एक तरफ इस सेज में सुनलो,
मानव करे आराम,
पर एक पल आता है ऐसा,
सब हो जाए हराम,
सभी जानते हैं इसे,
यह नहीं है गुमनाम,
विज्ञान नाम है इसका,
मानव दिमाग है लाई ,
इस दुनिया में रहनें वालों नें,
मौत की सेज सजाई।
Sunday, November 3, 2013
#5--पुष्प ही क्यों
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पुष्प पर बेरहमी दिखा कर,
चल दिए मोहब्बत का इजहार करनें,
कम्बख्त इश्क बरकरार रखनें को,
चल दिए पुष्प बेकार करनें।
क्या कभी तूनें कहीं पे,
बेरहमी से प्यार पाया है,
पुष्प पर बेरहमी दिखा कर,
क्यों प्यार किसी से जताया है?
जो पुष्प सी नाजुक प्रकृति पर,
यूँ बेरहमी दिखायेगा,
सोंच कैसे लिया तुमनें,
तुमसे दरिया- दिली दिखायेगा।
Tuesday, October 22, 2013
#4--न डगमगाए तेरे पग
न डगमगाए तेरे पग
Pag |
जीवन की चढ़ाई आई, डगमगाएगे तेरे पग,
संभल कर फूंक-फूंक कर रखना कदम है आसान डग।
मंजिल है सामने मिल गई है सीढ़ी सीधी,
कभी डगमगाएगा तो कभी खीचे जायेंगे तेरे पग,
आई जीवन की चढ़ाई आई डगमगाएंगे तेरे पग।
मौका आएगा खेला जायेगा खेल साथ तुम्हारे,
कही हो न ऐसा मोहरा बन जाए तू खुद प्यारे,
प्यारे सुन जीत की बताए तू हो जा सजग,
आई जीवन की चढ़ाई आई डगमगाएंगे तेरे पग।
Wednesday, October 9, 2013
#3--भ्रष्टाचारियो किस - किस से छुपओगे?
भ्रष्टाचारियो किस - किस से छुपओगे?
इससे छुपाओगे, उससे छुपाओगे,
मुझसे छुपाओगे,अपने आप से छुपाओगे,
कण - कण में व्याप्त है ईश्वर,
तुम रब से क्या छुपाओगे?
जो भी करते हो, जितना भी करते हो,
सब लेखा - जोखा ईश्वर लिखता है,
कितना तुम भागो दुनिया से,
पर आत्मा से कहा बच पओगे?
आत्मा-परमात्मा की जोडी अजीब है,
जहा जाओगे खुद को दोषी पाओगे,
कण - कण में व्याप्त ही ईश्वर,
तुम उस रब से क्या छुपाओगे?
Thursday, October 3, 2013
#2--फूल मत तोडो !
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Don't Pluck The Flower |
शरम कर इस जहा में,
तू तोडता है ऐसा बंधन जो,
दिल-दिल से जोडता है ।
मत कर ऐसा क्यो,
कोमल भावना मारोडता है,
शरम कर इस जहा में,
प्रेम प्रतीक तू तोडता है ।
मत दिखा बेरहमी यह,
बन प्रेम का प्रतीक तू,
तेरा दिल तो कोमल है ,
दे दुनिया को नई सीख तू ।
बन जा मिशाल दुनिया के लिये,
तू क्यो नाक सिकोडता ही ,
अरे !शरम कर इस जहा में,
प्रेम प्रतीक तू तोडता है ।
Sunday, September 29, 2013
#1--मा [ Mother-maa]
मा बोले बेटे से :-उठ बेटा दुनिया देख, दुनिया देख रही तुझको,
मत जा ज्यादा दूर मा से, ममता कह रही तुझको ।
बात-बात मे गुस्सा करके, बेटा युं तेवर दिखलाये,
ममता से यू ओत-प्रोत मां, ममता के जेवर पहनाये ।
चंद पंक्ती की तालीम पा कर, बेटे माओ को ठुकाराये ।
मा तो वह ही जो सबसे पहले, उंगली थाम चलना सिखलाये ।
प्रथम पाठशाला की शिक्षा, बेटे यू ही भूल जाये,
पर मा है वह एक जो, कदम-कदम पर थमना सिखालये ।
याद करो बचपन ऐ बेटो, मा के आन्चल मे छुप जाते,
करी शरारत या फिर गलती, तोतली बानी मा को बतलाते ।
ममता की आन्चल से ढक कर, मा यू ही दुनिया से लड जाती,
दुनिय मे काले साये से बचने को, जन्म से काला टीका लगाति ।
आज के बेटे दुनिय की चका- चौन्ध मे, मा से यू हि लड जाते,
फिर थोडी सी ठोकर लगने से, यू ठोकर खा कर गिर जाते ।
तब भी मा बेटे से यह ही कहती है :-
उठ बेटा दुनिय देख, दुनिया देख रही तुझको,
मत जा ज्यादा दूर मा से, ममता कह रही तुझको ।
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मा बोले बेटे से :- उठ बेटा दुनिया देख, दुनिया देख रही तुझको, मत जा ज्यादा दूर मा से, ममता कह रही तुझको । बात-बात मे गुस्सा ...
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