Bakhani is a Collection of Hindi Poems.- https://www.bakhani.com
bakhani is my thinking. it is belonging to the "Hindi Literature". bakhani is to describe the world, and word in my own opinion. any one who is interested in poems, assays, stories, and other stream of literature may refer to my blog "bakhani".
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मेरा हिन्दुस्तान, मेरा भारत, मेरा INDIA किसी भी नाम से पुकारूं दिल गर्व से सिर्फ एक ही आवाज देता है "भारत माता की जय"। हिन्दुस्तान जो उत्तर में हिमालय की वर्काफीली चोटियों से सुसज्जित काश्मीर से दक्षिम में हिन्दमहासागर के तट पर स्थित कन्याकुमारी तक फैला है । हिन्दुस्तान की सीमाएं शदियों से सिमटती रहीं कई ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध हैं जिसके आधार पर कह सकते हैं कि आज जो हिन्दुस्तान हमें दिख रहा है उतना ही नहीं रहा। इतिहास हिन्दुस्तान के विस्तार की गाथा कहता है परन्तु अफशोष है कि हिन्दुस्तान से सम्बन्धित ऐतिहासिक साक्ष्यों को बहुत तोडा मरोडा गया मिटाया गया और वास्तविकता को दबाया गया।
हिन्दुस्तान को समर्पित मेरी दो हिन्दी कविताएं हैं जिनका आज अपनें इस ब्लाग पोस्ट में जिक्र करनें जा रहा हूँ जो मेरी वेबसाइट http://www.bakhani.com पर प्रकाशित हैं । उन्हीं के बारें में यहां विवरण है-
1. ऐसा मेरा हिन्दुस्तान
फन फैलाए खडा पाक है,ड्रैगन लेवै ऊंची उडान,
बाहर भीतर से फैला डर,
फिर भी ऊंचा सर देखो शान,
पक्ष विपक्ष हाहाकार हरदम,
हर नेक काज के बुरे बखान,
मार पडे चाहे चोंट पडे,
न दिखे चिन्ता का कोई निशान,
प्रगति पथ पर काबिज है,
ऐसा अपना हिन्दुस्तान। बापू चाचा आजाद गुरू,
अरु सबनें बनाया देश महान,
देश के जुुगाड से देखो,
नहीं रहा है विश्व अंजान,
हर बहकावे में आ जाए,
भोली भाली जनता नादान,
जिन्हे चुना है देश हितैषी,
वही दिखाते अल्प ज्ञान,
विश्व में दिखलाई महाशक्ति है,
ऐसा अपना हिन्दुस्तान। जन सुख मन सुख वसुधैव कुटुम्बकम,
उद्येश्य देश का विश्व कल्यान,
कृषि अग्रणी व्यवसाय अग्रणी,
अग्रणी देश में ज्ञान विज्ञान,
रामानुजम भाभा भीमराव,
अब्दुल कलाम सरीखे हैं विद्वान,
यहां राम रहीम दीवाली ईद,
ईश परम क्रिसमस रमजान,
संग हस उत्साह मनाये,
ऐसा अपना हिन्दुस्तान।
मुझे गुरेज नहीं ठेकेदारों से,
नहीं परवाह मुझे कौम किरदारों से,
मैं हिन्दुत्व पर भी चाहे गर्व न करूं,
पर परहेज नहीं भारत जय के नारों से।
कुछ जन्म से कहते खुद को वासी,
कुछ कहते वासी खुद को इच्छा से,
मैं दिल से भारतवासी हूं,
दिल गूंजता है भारत के जयकारों से।
सीखा है आदर सम्मान की भाषा,
छोंड धर्म का चश्मा सब सींखेंगे है आशा,
निज हित निज स्वारथ और लालच,
बच के रहना दिल के इन गद्दारों से।
ऐ जमी तू जल मुझे चलनें से परहेज नहीं,
गर जलेगी दुनिया संग मुझे जलनें से परहेज नहीं,
आजादी को जाति धर्म की खूब लडी लडाई,
खूब सीख मिली है देश की सरकारों से।
बहन बेटी जब जलती मरतीं दरिंदे खुले आम घूमते हैं,
घर बैठे सारे प्रबुद्धजन देख के टीवी बस उफ करते हैं,
बेटी को शिक्षा दे दो चंगा बेटों को मत वंचित करो,
गर बेटा दरिंदा है तो चुनवा दो उन्हें दीवारों से ।
जहाँ एक ओर प्रकृति दुनिया के लिये वरदान है वहीं प्रकृति यदि छेंड छांड किया जाए तो विनाशकारी है । नदियों पर खनन, पहाडों पर खनन, समतल भूमि पर खनन, प्राकृतिक सम्प्रदा का विनाश करना ही आज की उन्नत सभ्यता का एक मात्र उद्येश्य बन कर रह गया है । तो क्या इस दुनिया में उन्नत सभ्यता और विकसित तकनीक के नाम पर उपलब्ध समस्त प्राकृतिक सम्पदा का विनाश होना तय ही है ? आखिर में प्रकृति अपने आप को दुरुस्त करनें के लिये जब विनाशकारी रूप धारण करती है तो स्तब्धता के अतिरिक्त कुछ और बचता ही नहीं है। Click for More
Women are respected in Indian culture, or in other words, women are worshiped. Many forms of a woman, mainly mother, wife, sister, and daughter, are themselves eligible for different honors.
Indian culture differs from Western civilization, because there is a difference in popular opinion. In the mind of a father, daughter's future and daughter's marriage worries and social change keeps getting worse.
As long as the daughter does not get married, there is a concern in her father's mind. Today, I am presenting my argument through some prayers, why a daughter does not seem to be burdened with father's shoulders
How to tell my reasoning through your poem "KYO NA LAGE BOJH BETIYA- क्यों न लगें बोझ बेटियां"
भारतीय संस्कृति में औरतों का सम्मान किया जाता है या फिर दूसरे शब्दो में कहें कि औरतों की पूजी की जाती हैं । औरत के कई रूप मुख्यतः मां, पत्नी, बहन, व बेटी अपने आप में अलग अलग सम्मान के पात्र हैं ।
भारतीय संस्कृति पश्चिम सभ्यता से भिन्नता होने के कारण जनमानस की सोंच में भिन्नता है। एक पिता के मन में बेटी के भविष्य और बेटी के शादी की चिन्ता व सामाजिक बदलाव हमेसा खटकती रहती है ।
जब तक बेटी की शादी न हो जाए पिता के मन में एक चिन्ता बनी ही रहती है । आज मैं कुछ पक्तियों के माध्यम से अपना तर्क प्रस्तुत कर रहा हूं कि क्यों एक बेटी पिता के कंधें में बोझ न प्रतीत हो
अपनी कविता "क्यों न लगे बोझ बेटियां" के माध्यम से मेरा तर्क कैसा लगा जरूर बतायें
Wednesday, March 16, 2016
ऐ प्रकृति मैं तुझे सम्भालूँ।
हरियाली मैं तुझे संजोऊँ।
पीढ़ी दर पीढ़ी घटती जाए,
मूढ़ कहे तू काम न आए ,
वो अज्ञानी तुझे मिटाए,
मत विसरो ऐ दुनिया,
यही हरियाली प्राण बचाये।
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Bakhani is the collection of hindi poem written by heart while feeling that I am lost between the ways and destination. All the stress of mind was explained with these lines which are now present at BAKHANI.
Bakhani is the collection of Hindi Poems written by me dedicated to my parents and fully furnished with thoughts and HINDI LITERATURE.