Tuesday, March 11, 2014

#10--अरमान

हम तो तनहा दूर ही थे तुमसे,
बस दिल में पास आने के अरमान जागे तो थे,
रह गए इतने पीछे हम वक़्त,
बेवक़्त  कदम मिलाने को भागे तो थे। 

बिछड़ जाने के डर नें जकड रखा था,
डर से निकलनें को यूँ क्या करता अकेला,
जीत दिल के डर को भांप कर,
समन्दर के उथले किनारों को झांके तो थे।

समन्दर की लहरों में ताकत वो थी,
जीतनें को उस डर से भीगे तो थे। 

राहों में यूँ बढ़ कर पीछे रह गए,
दिल में अरमान संग चलनें के थे,
कोशते हैं खुद को हम पीछे,
तुम बस थोडा आगे तो थे। 

हम तो तनहा दूर ही थे तुमसे,
बस दिल में पास आनें के अरमान जागे तो थे। 

Bakhani Hindi Poems, kavita- khayali pulao

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