Bakhani is a Collection of Hindi Poems.- https://www.bakhani.com bakhani is my thinking. it is belonging to the "Hindi Literature". bakhani is to describe the world, and word in my own opinion. any one who is interested in poems, assays, stories, and other stream of literature may refer to my blog "bakhani". After all BAKHANI is collection of Poems, Dreams, Essays, and thoughts.
Monday, November 17, 2014
Monday, October 13, 2014
#14 क्या मुझे हक़ नहीं?
ज़िन्दगी के पहलू क्यूँ इतने उलझे से लगते है?
क्या चेताती आसमान से गिरती वो आग कश्मीर में,
क्यों आखिर किसी हुद - हुद का डर यूँ सता रहा है,
क्या मुझे चैन से सांस लेने का हक़ नहीं?
मैं फैली हूँ उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कन्याकुमारी तक,
समेटें हैं मैंने विविध रंग अपने आगोश में,
विविधता में एकता की एक मिशाल हूँ विश्व में,
क्या मुझे चैन से जीने का हक़ नहीं?
मुझे बाहर से जितना डर है वह काम है,
भीतर ही भीतर खा रहे दीमक की तरह मुझे,
नोंच रहे हैं गिद्धों की तरह जिश्म को मेरे,
क्या मुझे स्वातंत्र्य का हक़ नहीं?
यूँ ही कर रहे वस्त्रहरण खुलेआम,
अंग प्रदर्शन की दौड़ में मुझे भी कर दिया है सामिल इन्होंने ,
क्या मुझे स्वच्छंद रहने का हक़ नहीं?
कहाँ सो गए ऐ बेटो मैं चुप हूँ पर रो रही हूँ,
दिखावे की इस दुनिया नें ताना है तमंचा मेरे सीने में,
कहते हैं मत रो लुटाती रह आबरू खुद की,
क्या मुझे रोने का हक़ नहीं?
आखिर कब मेरे ये बेटे उठेंगे,
कब मेरी ललकार सुनेंगे ,
न जाने वो कब कहेंगे-
"अब यूँ ही ललकार देश के इन कर्णों में गूंज रही,
भारत माता हम बेटों में आन-बान सब ढूंढ़ रही। "
Sunday, September 14, 2014
#13-हिंदी में भी जीवन दिखता है
वर्तमान जो मैं अगर देखूँ ,
तो हिंदी में भी जीवन दिखता है,
भविष्य को सोचता हुँ जानो,
पश्चिम का आगम दिखता है,
यूँ दिखती है हिंदी गर्त में आगे,
बहन भी इससे ऊँची दिखती,
राजनीतिक स्तर अब तय कर रहा,
देख हिंदी सुबकती-सुसकती,
झांक कर देखो अपना भूत ऐ दोस्तों,
भाषा विकास क्रम दिखता है,
जाने किस दिशा में यूँ विकास क्रम चल रहा,
निश्चित उज्जवल भविष्य में अंधकार दिखता है,
वर्तमान जो मैं अगर देखूँ ,
तो हिंदी में भी जीवन दिखता है।
Tuesday, June 24, 2014
#11-कमल खिल गया
पेड़ गिरे दीवार गिरे,
हुए कई एक्सीडेंट,
हिन्दुस्तान की चुनावी आंधी में,
हिल गए कई देशों के प्रेसीडेंट।
इस बार की चुनावी लहर देखो,
कुछ ऐसी आई,
पुरे देश में सुनामी फैली,
और एक बड़ा परिवर्तन लाई।
हांथी उड़ गया छूट गया,
हाथ से साथ,
साइकिल भी नहीं चली दूर तक,
देखते रह गए आप।
इस बार की चुनावी आंधी देखो,
की पूरा देश हिल गया,
देखो चुनावी दलदल में इस बार,
कमल खिल गया।
हुए कई एक्सीडेंट,
हिन्दुस्तान की चुनावी आंधी में,
हिल गए कई देशों के प्रेसीडेंट।
इस बार की चुनावी लहर देखो,
कुछ ऐसी आई,
पुरे देश में सुनामी फैली,
और एक बड़ा परिवर्तन लाई।
हांथी उड़ गया छूट गया,
हाथ से साथ,
साइकिल भी नहीं चली दूर तक,
देखते रह गए आप।
इस बार की चुनावी आंधी देखो,
की पूरा देश हिल गया,
देखो चुनावी दलदल में इस बार,
कमल खिल गया।
Tuesday, March 11, 2014
#10--अरमान
हम तो तनहा दूर ही थे तुमसे,
बस दिल में पास आने के अरमान जागे तो थे,
रह गए इतने पीछे हम वक़्त,
बेवक़्त कदम मिलाने को भागे तो थे।
बिछड़ जाने के डर नें जकड रखा था,
डर से निकलनें को यूँ क्या करता अकेला,
जीत दिल के डर को भांप कर,
समन्दर के उथले किनारों को झांके तो थे।
समन्दर की लहरों में ताकत वो थी,
जीतनें को उस डर से भीगे तो थे।
राहों में यूँ बढ़ कर पीछे रह गए,
दिल में अरमान संग चलनें के थे,
कोशते हैं खुद को हम पीछे,
तुम बस थोडा आगे तो थे।
हम तो तनहा दूर ही थे तुमसे,
बस दिल में पास आनें के अरमान जागे तो थे।
Subscribe to:
Posts (Atom)
Bakhani Hindi Poems, kavita- khayali pulao
The video for the hindi poem in my website https://bakhani.com https://bakhani.com/khayali-pulao/ Wordings are as follows खयाली पुलाव ...

-
foKku& ,d vfHk'kki इस दुनिया में रहनें वालों ने, मौत की सेज सजाई, दिन - प्...
-
मा बोले बेटे से :- उठ बेटा दुनिया देख, दुनिया देख रही तुझको, मत जा ज्यादा दूर मा से, ममता कह रही तुझको । बात-बात मे गुस्सा ...
-
The video for the hindi poem in my website https://bakhani.com https://bakhani.com/khayali-pulao/ Wordings are as follows खयाली पुलाव ...